
निज स्वरूपमे सभी अवतार के दर्शन कराने को शक्तिमान
पूर्वे राम कृष्ण आदि जो जो अवतार हुए वो सर्व अवतारों को भगवान स्वामिनारायण अपने निज स्वरुप में दुसरे किशिको भी दिखा शकने के लिए शक्तिमान थे. इसी लिए ही भगवान स्वामिनारायण को अवतार नहीं किन्तु 'अवतारी ' और 'पूर्ण पुरषोत्तम नारायण ' और सर्व अवतार का 'कारण ' माना जाता है.
तद्रुपानंदस्वामि की नोंद पोथी का किस्सा नम्बर : ५५ :-
तद्रुपानंदस्वामि की नोंद पोथी का किस्सा नम्बर : ५५ :-
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एक समय श्री हरी अपने संतगण के साथ गाँव 'ध्रागन्ध्रा ' पधारे. जोगाशरतालाब के पास सभा भरी और अपने संत-हरिभक्तोके साथ गोष्ठी चल रही थी. उसी समय गाँव के राजकुमार रायमलसिंह जिन्होंने पहेलेभी श्री हरी के बारे में सुना था वो श्री हरी के दर्शन के लिए आये. श्री हरी को देखते ही वो उनसे बहुत प्रभावित हुए और सोचा श्री हरी अपने गाँव में ज्यादा दिन तक रुके तो गाँव के लोगोंके लिए अच्छा रहेगा. इसी वजह से राजकुंवर ने मूलजी ओज़ा को अपने करीब बुला के कहा - "श्री हरी और संतगण के भोजन आदि की व्यवस्था राज्य सरकार करेंगी मगर आप श्री हरी यहाँ अपने गाँव में ज्यादा से ज्यादा रहे ऐसा इन्तजाम मेरी ख़ातिर करे. मुलजि भक्तने ये बात संतगणको बताई और संतगण ने ये बात जभी श्री हरी से कही तो वो इस विचार से राजी हो गए.
बाद में इसी जागाह पे रोज कथा-वार्ता-कीर्तन का दौर शरु हो गया और रायमलसिंह कुंवर भी नित्य आने लगे हर दिन कुंवर को श्री हरी का नित्य नविन रूपमें दर्शन होने लगे. एक दिन कुंवरने श्री हरी से पूछा - पूर्वे बहुत सारे २४ अवतार जैसे कि नृसिंह - वामन - वाराह - कच्छ - मच्छ - राम - कृष्णा आदि हो गए ऐसा शास्त्रोमे लिखा है - वो सब कैसे होंगे ?
उसी वक्त श्री हरी ने रायमलसिंह को श्री कृष्ण के रुपमे दर्शन दिया. पिला पीताम्बर पहने, त्रिभंगी अदा में खड़े हाथ में मुरली, पाँव में जांजर, शिर पे मोर पिंछका मुकुट धरे मूर्ति का दर्शन कर के कुंवर दंग हो गए. कथा सुनने के बाद कुंवर घर आये और दुसरे दिन जभी आये तो श्री हरी ने धनुष्य धारी श्री राम के स्वरुप में दर्शन दिया. बाद में रोज वराह - कच्छ - परसुराम आदि सभी अवतार का दर्शन करवाया. और अंत में श्री हरी ने अपना अक्षरधाम का स्वरुप भी दिखलाया. और इसी तरह श्री हरी ने कुंवर को अपना सर्वोपरि अवतारिपन का निश्चय दृढ कराया.
गढ़पुर में एभल खाचरको चतुर्भुज मूर्ति का दर्शन दे के निश्चय करवाया था. कच्छ के गाँव भचाऊ में एक लोहार भक्त तुलसी रामायण का अभ्यासी था. इसलिए श्री हरी ने उनके पास रामायण सुनते सुनते हुए उनको श्री राम स्वरुप में दर्शन दिया था.
एक समय श्री हरी गढ़पुर में विराजमान थे. धन तेरस के त्यौहार की सुबह का वक्त था. उसी समय बिजल ग्वाला ९० गायको लेके दरबार गढ़ के चौक में आया. श्री हरी ने ब्राहमिन के पास सभी गायों का गौपुजन करवाया . उसी समय एक कौतुक हुआ. एक एक गाय के पास श्री कृष्ण के रूप में खड़े श्री हरी ने ९० स्वरुप धर के सौ प्रथम श्रीमती लाडुबा और बाद में सभी उपस्थित स्त्री भक्तो को ये दर्शन प्राप्त हुआ.
बाद में इसी जागाह पे रोज कथा-वार्ता-कीर्तन का दौर शरु हो गया और रायमलसिंह कुंवर भी नित्य आने लगे हर दिन कुंवर को श्री हरी का नित्य नविन रूपमें दर्शन होने लगे. एक दिन कुंवरने श्री हरी से पूछा - पूर्वे बहुत सारे २४ अवतार जैसे कि नृसिंह - वामन - वाराह - कच्छ - मच्छ - राम - कृष्णा आदि हो गए ऐसा शास्त्रोमे लिखा है - वो सब कैसे होंगे ?
उसी वक्त श्री हरी ने रायमलसिंह को श्री कृष्ण के रुपमे दर्शन दिया. पिला पीताम्बर पहने, त्रिभंगी अदा में खड़े हाथ में मुरली, पाँव में जांजर, शिर पे मोर पिंछका मुकुट धरे मूर्ति का दर्शन कर के कुंवर दंग हो गए. कथा सुनने के बाद कुंवर घर आये और दुसरे दिन जभी आये तो श्री हरी ने धनुष्य धारी श्री राम के स्वरुप में दर्शन दिया. बाद में रोज वराह - कच्छ - परसुराम आदि सभी अवतार का दर्शन करवाया. और अंत में श्री हरी ने अपना अक्षरधाम का स्वरुप भी दिखलाया. और इसी तरह श्री हरी ने कुंवर को अपना सर्वोपरि अवतारिपन का निश्चय दृढ कराया.
गढ़पुर में एभल खाचरको चतुर्भुज मूर्ति का दर्शन दे के निश्चय करवाया था. कच्छ के गाँव भचाऊ में एक लोहार भक्त तुलसी रामायण का अभ्यासी था. इसलिए श्री हरी ने उनके पास रामायण सुनते सुनते हुए उनको श्री राम स्वरुप में दर्शन दिया था.
एक समय श्री हरी गढ़पुर में विराजमान थे. धन तेरस के त्यौहार की सुबह का वक्त था. उसी समय बिजल ग्वाला ९० गायको लेके दरबार गढ़ के चौक में आया. श्री हरी ने ब्राहमिन के पास सभी गायों का गौपुजन करवाया . उसी समय एक कौतुक हुआ. एक एक गाय के पास श्री कृष्ण के रूप में खड़े श्री हरी ने ९० स्वरुप धर के सौ प्रथम श्रीमती लाडुबा और बाद में सभी उपस्थित स्त्री भक्तो को ये दर्शन प्राप्त हुआ.
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