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निज स्वरूपमे सर्व धाम और धामी का दुसरोको
दर्शनकरानेका सामर्थ्य
अगतराय गाँव में रामनवमी के उत्सव का दिन था। श्री हरी अपने संत हरिभक्तो की सभामें विराजमान थे। अचानक श्री हरिके स्वरूपसे दिव्य प्रकाश निकला और इसी तेजोमय प्रकाश में अपने अपने धाम गोलोक-वैकुंठ आदिमे विराजमान पूर्वके कई अवतारों का दर्शन श्री हरिने सभामे उपस्थित सर्वजन को करवाया था। इसी बात का सम्पूर्ण वर्णन श्री अधरानंद स्वामी की नोंद पोथी में मिलता है।
एक समय लोज गांवमे सभामे उपस्थित सभीको समाधिकी स्थिति करवाई।समधिकी स्थितिमें किसीको श्री हरी अक्षरधाम में अपने अगणित मुक्त जिवोके बिच बैठे हुए नजर आये तो किसीको गोलोकमे लक्ष्मी-राधिका और पार्शदोके साथ नजर आये। किसीको वैकुंठ धाम में लक्ष्मीजी के साथ विष्णु स्वरूपमे श्री हरी नजर आये । किसीको स्वेतदिप धाममें निरन मुक्त सहित महास्वरुपके रुपमे दर्शन दिया। किसीको अव्यादिक धाम मध्ये लक्ष्मी आदिक शक्तियों और पार्षदे सहित भुमापुरुषके रूप में श्री हरि नजर आये तो किसीको ऋशिमुनियोके बिच बद्रिकाश्रम में बैठे नर-नारायण स्वरूपमे दर्शन प्राप्त हुआ। किसीको क्षीर समुद्रमे मध्ये लक्ष्मी और शेषनाग सहित योगेश्वर के स्वरूप में श्री हरी का दर्शन प्राप्त हुआ। इस किस्सेकी नोंद सद्गुरु गुनातितानंद स्वामि की नोंधपोथी में मिलती है।
एक समय राजबाइ भक्तके निमंत्रणसे गढ़पुर गाँवके दरबारगढ़के उगमणे दवार मध्ये भोजन के लिए श्री हरी बिराजमान थे । अपने संतगणके साथ श्री हरि ने भोजन किया, बादमें दादा खाचार ने श्री हरि की पूजन विधि की तब संतगण ने स्वामिनारायण महामंत्रका गान शुरू किया। बाजू के कमरे की खिड़की से लाडुबा, जिवुबा और राजबाई तीनो बहेने श्री हरि के दर्शन में व्यस्त थी। उसी समय श्री हरि का कमरा तेजोमय हो गया । दिव्य प्रकाश में सोनेके सिंहासन पर चतुर्भुज स्वरुप में बैठे लक्ष्मीनारायण देव अपने मुक्तगण के साथ नजर आये । बादमे लक्ष्मीनारायण देव अपने सिंहासनसे खड़े हो के श्री हरी को आके भेटे और उनके स्वरुप में विलीन हो गए। उसी तरह उनके मुक्तगण श्री हरी के संतगण में लीन हो गए ।
एक समय श्री हरि लाधा ठक्कर के निमंत्रण से उनके घर पधारे। लाधा, हरजी और प्रेमजी ठक्कर तीनो भाइयो ने भाव से श्री हरि का पूजन किया। पास में बैठी उनकी वृद्ध माँ को श्री हरि ने पूछा के मेरे बारे में आपका क्या ख़याल है ? तो वो बोली आप तो हमारे लिये साहिब समान है। ये लोग आगाखानी खोजाह होने से अपने खुदा और पयगम्बर को साहिब के नाम से बुलाते है । तभी श्री हरि ने मुस्कुराते हुए बताया में तो सभी अवतारों का कारण और काल-माया का नियंत्रण करनेवाला हूँ। तो वृद्धा बोली में तो आप और साहिब दोनों को एक ही समजती हु। उसी समय कौतुक हुआ - श्री हरि के स्वरूपसे कोटि सूर्य का तेज निकला। तेज के पुंज में सोनेके सिंहासन पर बैठे श्री हरि के आजू बाजू कई पयगम्बर हाथ जोड़ के खड़े नजर आये। बाद में सभी पयगम्बर श्री हरी के स्वरूप में विलीन हो गए। ये देखने से सभीको श्री हरि का सर्वोपरी पूर्ण पुरशोत्तम स्वरुप का निश्चय द्रढ़ हो गया ।
हरजी ठक्कर खोजाके वंश -वारस आजभी भावनगर अक्षरवाडी मंदिरकी सेवा में जुड़े हुए को में २०११ साल में मिल चूका हु।
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