Wednesday, October 17, 2018

श्री हरि के असाधारण लक्षण - ४.१





पूर्व के  अवतारों  जैसा  सामर्थ्य  श्री हरि  के 
 संत-भक्तो ने  दिखलाया






गाँव अगतराय में भक्तराज परबतभाई के भीमभाई नामधरी भाई रहते थे. अपने खेत में कुछ खोदकाम करते वक्त भीमभाईने एक जगाह पे बहोत बड़ा चींटियो का वृन्द देखा. श्री हरि उसी वक्त अगतराय गाँवमें विराजमान थे. इसी बात से लेके भीमभाई के दिमाग में विचार आया 


- "आज पूर्ण पुरषोत्तम स्वामीनारायण भगवान यहाँ मौजूद है, मगर ये बेचारी चींटीया हमारे जैसी मनुष्य नहीं है इसीलिए उनको स्वयं भगवान की यहाँ मौजूदगी से लेके क्या फायदा ? इस बेचारी चींटियो को कभी मनुष्य देह की प्राप्ति होगी ? और जब भी मनुष्य देह की प्राप्ति होगी उसी वक्त क्या श्री हरि का योग उनके लिए बन पायेगा ? ये बात तो ना-मुमकिन है तो फिर इस बेचारी चींटियों का मोक्ष कब और कैसे बन पायेगा ? भीमभाई को चींटियों के लिए तरस आई मगर सोचा आखिर में भला इसमें क्या कर शकता हूँ ? 


उसी समय एक कौतुक हुआ. अकाशमे से बहुत सारे विमान खेत में उतरने लगे, सभी चींटीया चतुर्भुज देह धारण करने लगी और विमान में बैठके वैकुण्ठ धाम के लिए निकल पड़ी. बाद में भिमभाई विस्मित होते हुए श्री हरि के पास दौड़ के पहोंचे और ये घटना के बारे में जताया. तभी श्री हरि ने जो जताया  वो आचार्य श्री विहारीलालजीने अपनी पुस्तक में इस तरह लिखा है. " पूर्ण पुरषोत्तम की कार्य पद्धति और सामर्थ्य दुसरे अवतारों से विभिन्न होता है. वो जभी चाहे तभी किसी भी जिव को मोक्ष प्राप्ति, किसी भी तरह करा शकते है. अपने भक्त के सोच और संकल्प मात्र से भी कार्य सिद्धि हो शक्ति है. अवतार और अवतारी के सामर्थ्य में इसी तरह का फर्क है .
एक समय सदगुरु श्री गोपालानंद स्वामी गाँव धोलेरा में विचरण कर रहे थे. तभी प्लेग की महामारी में बहुत लोगों की म्रत्यु होने लगी. ये समाचार धोलेरा मंदिर में भी पहोंचे, तो गोपालानंद स्वामी ने मंदिर स्थित सभी संतो को बुलाके पूछा क्या आपको ये दुनिया छोड़ के अक्षरधाम जानेकी इच्छा है ? तो कुछ संत लोग "हां" बोलके बैठ गए उनके सामने. और तुरंत ८ - १० संत लोग ने प्लेग की बीमारी ग्रहण की और एक दो दिन में उनका अन्तकाल हो गया.


भायावदर गाँव में एक रामजी विप्र रहते थे, जो बाद में दीक्षा ले के महापुरषदास स्वामी बने थे.उनके भाई माधवजी बीमार हो गए और बताया मेरे कु अभी इस दुनिया छोड़ने की इच्छा है. तो रामजी विप्र ने भाई को बताया ३ दिन के अन्दर  तेरी इच्छा पूर्ण होगी. बाद में उनके माँ-बाप की अन-उपस्थिती में रामजी विप्र ने माधवजी का हाथ अपने हाथ में लिया और स्वामिनारायण, स्वामिनारायण नाम रटण करते हुए तिन ताली दी तो फ़ौरन ही माधवजी का इंतकाल हो गया.  बाद में माधवजी की माँ बेटेके लिए पानी ले के पिलाने को आई तभी उनको माधवजी की म्रत्यु की जानकारी हुयी.     

एक समय गाँव मेमका के मुलजि शेठ की माँ पानबाई गढ़पुर गाँव आयी, तभी मोटिबा को दरबार गढ़की ओशरि में खड़े हुये देखकर उनको भावुकता से जुक के नमन किया. उसी समय मोटिबा के देह से तेज का पुंज निकलता हुआ उनको नजर आया. तो पानबाई ने उनके चरण पकड़ लिये और  वरदान मांगने लगी. बोली "श्री हरि को साथ लेके मेरे अन्तकाल समय आप जरुर आना " तो मोटिबा ने "हां" कह दी. बाद में म्रत्यु समय पानबाई ने सबको बताया था के में मोटिबा और श्री हरि के साथ अक्षरधाम जा रही हूँ.


गाँव मांगरोल में एक समय भक्तराज गोरधनभाई शेठ के घर सत्संग सभा चल रही थी. तभी माली तिकमजी ने सवाल किया आप ये समाधि की बाते कर रहे है वो समाधि क्या चीज है और कैसी होती है ? तो गोरधनभाई बोले तूं मेरे सामने गौर से देख. जैसे ही दोनों की आँख से आँख मिली और तिकमजी को समाधि स्थिति प्राप्त हो गई - जैसे की आत्मा निकल जाने के बाद पड़ा हुवा शव. एक घंटे के बाद चुटकी बजाके गोरधनभाई ने उनकी समाधि अवस्था ख़त्म कर दी. बाद में तिकमजी ने समाधि अवस्था में अक्षरधाम पहोंच के उधर जो कुछ देखा उसका विवरण सभी सभाजन को दिया तो वो सुनके सब हैरान हो गए.

वर्ष १९९२ में अमदावाद शहर में BAPS ने पारायण का आयोजन किया था. भाद्र माह के अंत  तक गुजरात में बारिश नहीं हुई थी इसी लिए सब हैरान थे.  भक्तगणने  अपनी व्यथा की ये बात शास्त्री यग्नपुरुषदास जताई. तो स्वामिश्री ने पहेले योगीजी महाराज को मिलने के लिए बताया - तो वो बोले में श्रीजी महाराज से अवश्य प्रार्थना करूँगा. बाद में शास्त्रीजी महाराजने धर्मस्वरुपदासको आग्न्याकी की आप  समाधि स्तिथि धरके श्रीजी महाराज को मिलकर बारिश के लिए याचिका करे ‘ अक्षरधाम में बैठे श्री हरि ने बताया अगर शास्त्री यग्नपुरुषदास चाहते है तो जरुर बारिश होगी. दुसरे दिन ही बारिश तो हुई मगर कम थी; इसलिए धर्म स्वरुपदास दुसरे दिन भी समाधि अवस्था में अक्षरधाम स्थित श्री हरि को मिले और फिर ज़ोर से बारिश शुरू हो गई. धर्मस्वरुपदास जब समाधि स्थिति में ही थे तभी उसको २-१/२ किलो मगस का प्रसाद भी अक्षरधाम से प्राप्त हुआ जो सब को बाँट दिया गया. उसी वक्त एक कौतुक भी हुआ. सभी को दो  सुंढ धारी अयरावृत पे बैठा इंद्र और पीछे अम्बाडी में बैठे श्री हरि, गुनातितानंद स्वामी, गोपलानंद स्वामी और भगतजी महाराज का दर्शन प्राप्त हुआ . बाद में इंद्र ने निचे उतरके शास्त्री यग्नपुरुषदासजी का पूजन किया और फिर ये नज़ारा समाप्त हो गया. बाद में बहोत सारी बारिश हुई और पानी की कोई कमी रही नहीं.


वर्ष १९९४ में सोमेश्वर पीठवा ने गोंडल में सत्संगी जीवन की पारायण का आयोजन किया था. तभी पूना शहर का भगवानदास जो सत्संग में बिलकुल नया था वो भी शास्त्रीजी महाराज के बारे में सुनकर गोंडल आया था. उन्हों ने मन ही मन संकल्प किया की जब तक पूना में मंदिर निर्माण का इन्तजाम और श्रीजी महाराज का दर्शन मुजे नहीं होगा तब तक में खान नहीं खाऊंगा. पारायण को वो अंतिम दिवस था और व्यास पीठ पे शास्त्रीजी महाराजबिराजमान थे. यकायक व्यास पीठ के ऊपर शास्त्रीजी महाराज की जगह भगवानदासको ज़रकशी जामा, शिरपे अलौकिक पाघ, और सोनेके आभूषण पहने हुए स्वामिनारायण भगवान नजर आये. भगवनदास को पहले तो यकीन नहीं आया तो बार बार अपनी आँख पे हाथ रख के खोल- बन्ध की मगर वही द्रश्य नजर आया तो वो भाव विभोर हो गया. सभा मंडप में खड़े हो के उन्होंने सब को ये बात जताई. प्रवर्चन ख़त्म होते ही शास्त्रीजी महाराज ने भगवानदास को पास बुला के कहा - श्रीजी महाराज ने तुम्हे दर्शन देके तुम्हारा संकल्प पूर्ण किया तो अब खाना खा लो और भविष्य में ऐसी परिक्षा मत लेना. इसी तरह भगवानदास को प्रतीति हो गयी की शास्त्रीजीमहाराज के स्वरुप में आज भी साक्षात् श्री हरि बिराजमान है

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