Friday, June 29, 2018

ये है आजकी घर घर की राम -कहानी

ये है आजकी घर घर की राम -कहानी 





इस बारे में प्रस्तुत है मेरा स्वानुभव।


आज से ५५ साल पहले भावनगर में जब में पढता था उस समय मेरे कॉलेज के सभी यार दोस्त "चाँदनी " टी स्टॉल में शाम को इक्कठा होकर चाय पिया करते थे। मैं कभी इस महफ़िल में शामिल होने की हिम्मत नहीं कर पाता था।  क्यों की चाँदनी होटल के बगल  में ही मेरे पिताजी की दुकान "शाह एन्ड मकाती ब्रधर्स " थी। मेरे पिताजी भगवान श्री स्वामिनारायण की शिक्षापत्री नियमो के अनुसार बहार का खाने पिने के खिलाफ थे और मेरे सभी भाई बहेन हमारे माँ बाप की आमन्या रखते थे।  


आज के दिन मुझे एक ही समस्या है की  मेरे से ज्यादा पढ़े लिखे, ज्यादा धन दौलत और उच्च पद प्राप्ति कर चुके मेरे बच्चे "घर का खाना" के बजाय बहार होटल रेस्टोरा का खाना ज्यादा पसंद कर रहे है। इस समस्या का ५० % हल मैं ने ढूंढ लिया है के तुम्हे  पसंद वो तुम करो मगर मैं तो मेरे माँ बाप ने जो शिखाया वोही "घरका बनाया" खाना ही खाऊंगा।  जरूरत पड़ गई तो खुद पका लूंगा मगर बहार होटल/रेस्टोरा का तो हरगिज़ नहीं खाऊंगा।  


कोई मुज़से पूछे के मेरे इस निर्णय से मुझे क्या कुछ फ़ायदा हुआ और कोई तकलीफ तो नहीं झेलनी पड़ी ? तो में अब गर्व से कह शकता हूँ की पिछले ढाई साल से बहार का खाना पीना बंध करने के बाद मेरे जीवन में एक अजीब सा बदलाव आ गया है। 


१  एक तो शिक्षापत्री के कई नियमो में से एक "बहार का नहीं खाने का" नियम पालन      शुरू होने के बाद में जिधर भी जाता हूँ उधर मेरे लिए अपने आप ये व्यवस्था हो जाती  है। जैसा की में दुबई ४ दिन रहा और चारो दिन अपने आप मुझे सब जगह घर का ही खाना मिल गया। कुछ महीने पहले जब मै अकेला मुंबई पहुंचा और पहले ही दिन सुबह दादर मंदिर दर्शन करने को गया तो मंदिर के एक बिन परिचित कार्यकर ने मुझे बुलाके कहा का "ये लो पास और आरती के बाद आप यहाँ भोजन/प्रसाद ले के ही जाना। बाद में बात चित दरम्यान उन्हों से ज्यादा परिचय हुआ तो बोले  "आप चाहे तो रोजाना यहाँ मंदिर में भोजन के लिए पास मेरे से लिया करो"। 


२ पहले मेरे जीवन की हर समस्या का  हल में अपनी बुद्धि - तर्क - लॉजिक से निकालता था। अब मेरी हर समस्या का हल मेरे अंतरात्मा INTUTION से होने लगा है। 


मै बहन श्री शिवानी की बात से बिलकुल सहमत हूँ की बहार की खानी -पिणि से लोगों की  बुद्धि -तर्क -लॉजिक प्रकिया बढ़ती है और उसके साथ ही अंतरात्मा बुज़ती जाती है। ज्यादा बुद्धि लड़ाने वाले लोग अपनी परम्परा और धार्मिक मान्यता के बारे में शंका करने लगते है और बाद में अपने संस्कार भी खो देते है।  


अपने को अपने पूर्वजो से ज्यादा होशियार समज़ने वाले हर बुद्धिशाली व्यक्ति को एक प्रयोग करने का मेरा अनुरोध है। साल में कम से कम बच्चो के स्कुल वेकेशन दरम्यान २ महीना बहार का खाना बिलकुल बंध कर के घरका ही खाना खाने का प्रयोग करे।  ये प्रयोग करके अपने आप ही दोनों में क्या फर्क है वो अनुभव करके देखिये। 


















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